पुरुषों का किसी और की पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाना अब अपराध नहीं रहा

क्या है धारा 497

जो भी व्यक्ति किसी ऐसे स्त्री के साथ यौन संभोग करता जिसके बारे में वह जानता है, या उसके पास यह मानने के पर्याप्त सबूत हैं, कि वो किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी है, और यदि ऐसे यौन संभोग बलात्कार की श्रेणी में नहीं आते, तो वो व्यक्ति व्यभिचार यानी एडल्ट्री का दोषी है.(divorce-on-grounds-of-cruelty)

ऐसे अपराध के लिए उसे पांच वर्ष का कारावास या आर्थिक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. ऐसे मामले में पत्नी को ‘उकसाने वाली/बहकाने वाली’ नहीं मानी जाएगी उसे दंड नहीं दिया जाएगा.

how to prove adultery in india

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ये थी वकीलों वाली भाषा. अब अपनी वाली हिंदी में बताते हैं इसका मतलब

– किसी शादीशुदा औरत के साथ अगर उसके पति के अलावा कोई दूसरा आदमी शारीरिक संबंध बनाता है तो उस दूसरे आदमी के खिलाफ कानूनी कारवाई की जा सकती है लेकिन महिला के खिलाफ़ कोई कारवाई नहीं होगी.

– -अब इसमें अगर सीआरपीसी की धारा 198 जोड़ दी जाए तो ये कारवाई तभी होगी जब विवाहित महिला का पति शिकायत करेगा.

-– शारीरिक संबंध के दौरान स्त्री की भी सहमती होना आवश्यक है. क्यूंकि अगर स्त्री की सहमती नहीं है तो वो एडल्ट्री नहीं रेप की कैटेगरी में आएगा.
अगर दोष सिद्ध हो जाता है तो अधिकतम पांच साल की जेल या जुर्माना या दोनों ‘हो सकते हैं’.

(एडल्ट्री मने शादीशुदा होते हुए पर-पुरुष या पराई स्त्री से शारीरिक संबंध बनाना.)

 

 

sleeping with a married man advice
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आज क्यूं बात कर रहे हैं

अब ये ‘हो सकते हैं’, ‘हो सकते थे’ में बदल गया है. कबसे? आज यानी 27 सितंबर, 2018 से. पुरुष और स्त्री के विवाहेतर संबंध से जुड़े इस कानून को सुप्रीम कोर्ट ने गैर-संवैधानिक करार देते हुए खत्म कर दिया है. भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुआई में पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी. दीपक मिश्रा ने अपनी और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की तरफ से फैसला पढ़ते हुए कहा –

ऐसा ज़रूरी नहीं है कि एडल्ट्री दुखी दाम्पत्य जीवन का ‘कारण’ हो, वो दुखी दाम्पत्य जीवन का ‘परिणाम’ भी हो सकती है.

 

what kind of woman sleeps with a married man
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आज के फैसले की मुख्य बातें

1) शाइना जोसफ ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी जिसमें धारा 497 को असंवैधानिक बताया था.

2)केंद्र सरकार ने इस धारा का समर्थन किया था. केंद्र की तरफ से मनोनीत ASG (अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल) पिंकी आंनद का कहना था कि एडल्ट्री से समाजिक ढांचा टूटता है.

3)सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 497 के साथ-साथ, CRPC की धारा 198 को भी असंवैधानिक घोषित कर दिया.

4) सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 497 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 का उल्लंघन करती है. (इन दोनों अनुच्छेदों का सार एक शब्द का है ‘समानता’. यानी धर्म, जाति, नस्ल, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव न करना.

5) ये संविधान के अनुच्छेद 21 का यानी जीवन जीने के अधिकार का भी उल्लंघन करती है.

6) कोर्ट ने माना कि एडल्ट्री क्राइम नहीं होगी लेकिन तलाक़ का ‘आधार’ अब भी मानी जाती रहेगी.

 7) धारा 497 के समाप्त हो जाने बावज़ूद यदि एडल्ट्री के चलते कोई ‘आत्महत्या’ कर ले तो दोषी/दोषियों पर उकसाने का मुकदमा तो चलेगा ही चलेगा.

8) कोर्ट ने चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां ऐसा कानून नहीं है.

विषयांतर –

ये एक आंख खोलने वाली बात है कि क्यूं कानून की भाषा इतनी क्लिष्ट होती है. ताकि जितना हो सके लूप होल्स से बचा जा सके. इसके चलते ही फैसला सुनाते वक्त कोर्ट का ये कह देना काफी नहीं था आज से धारा 497 ख़त्म. बल्कि उसके ढेर सारे पहलूओं और संभावनाओं पर बात की गई

पहली नज़र में तो ऐसा लगता है कि इससे मर्दों को आज़ादी मिली है. और इसी दलील के चलते 158 साल पुराने इस कानून को 1954 और 1985 की सुनवाइयों में बरकरार रखा गया था. लेकिन गौर से देखने पर मालूम होता है कि धारा 497, दरअसल शादीशुदा स्त्री को पुरुष की ‘प्रॉपर्टी’ के तौर पर देखता था. क्यूंकि सोचिए ये कानून ऐसा ही था. जैसे मकान पर कब्ज़ा करने पर मकान को या मकान मालिक को नहीं किराएदार को ही दोषी ठहराया जाएगा. वो भी तब जब मकान मालिक कहेगा. और इस ‘एनोलोजी’ में मकान कौन?
विवाहिता स्त्री!

इसलिए ही तो महिला आयोग की अध्यक्षा रेखा शर्मा ने इस फैसले का स्वागत किया है.

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